
(मध्यप्रदेश की ‘बहेलिया गैंग’ बाहरी मजदूरों के माध्यम से राज्य के बाघों की गुफाओं तक पहुंच गई है। वन विभाग और वन्यजीव प्रेमियों को सतर्क रहने की आवश्यकता है।)
जिला प्रतिनिधी (यश कायरकर) :
वन समाचार की 10 जनवरी की खबर का असर, 25 जनवरी को वन विभाग ने बहेलिया सरगना को राजुरा से किया गिरफ्तार
वन समाचार ने 10 जनवरी 2025 को “चंद्रपुर-गड़चिरोली जंगल क्षेत्र में बाघ के शिकारियों का आतंक, गश्त बढ़ाने की आवश्यकता” शीर्षक से एक समाचार प्रकाशित किया था। इस खबर के बाद महाराष्ट्र के प्रसिद्ध बाघों के क्षेत्र चंद्रपुर जिले के राजुरा तालुका में 25 जनवरी को बहेलिया शिकारी समुदाय के सरगना अजित राजगोंड को महाराष्ट्र वन विभाग ने हिरासत में ले लिया।
मध्यप्रदेश के बहेलिया शिकारी समुदाय का सरगना अजित राजगोंड ने लगभग दस साल पहले महज तीन महीनों में 19-20 बाघों का शिकार किया था। इसके तुरंत बाद, 28 जनवरी को सातारा जिले के कराड तालुका के कासारशिंबे गांव में एक बाघ के लिए लगाया गया बहेलिया साजिशी फंदा बरामद किया गया। इससे स्पष्ट होता है कि महाराष्ट्र में बहेलिया शिकारी विभिन्न तरीकों से बाघों की गुफाओं तक पहुंच रहे हैं।
सोशल मीडिया और समाचार पत्रों के माध्यम से शिकारी कर रहे हैं लोकेशन का पता
चंद्रपुर-गड़चिरोली जिले में जारी मानव-वन्यजीव संघर्ष की खबरें सोशल मीडिया और समाचार पत्रों के माध्यम से तेजी से फैलाई जा रही हैं, जिनमें अक्सर वास्तविकता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। इसी के चलते, कई उत्साही लोग अपनी गाड़ियां लेकर रात में जंगल के आसपास घूमते हैं और बाघों के दर्शन करके उनकी तस्वीरें व लोकेशन सोशल मीडिया पर वायरल कर देते हैं।
इसका फायदा बाघों के शिकारियों को मिलता है, क्योंकि उन्हें बिना अतिरिक्त मेहनत किए बाघों की सटीक जानकारी और लोकेशन मिल जाती है। इसके बाद, वे अलग-अलग वेशभूषा में आकर इलाके की रेकी करते हैं और योजनाबद्ध तरीके से शिकार को अंजाम देते हैं।
पिछले साल, 28 जून 2023 को असम में एक बहेलिया गिरोह के पास से एक बाघ की खाल बरामद होने के बाद यह मामला उजागर हुआ था। इसी तरह, सोशल मीडिया से मिली जानकारी के आधार पर गढ़चिरौली-चंद्रपुर जिले के सावली तालुका में भी बाघ का शिकार किया गया था। इस कारण संदिग्ध व्यक्तियों, विशेष रूप से वेश बदलकर घूमने वालों पर कड़ी निगरानी रखने की आवश्यकता है।
सातारा जिले में भी गन्ना मजदूरों का इस्तेमाल शिकार के लिए
सातारा जिले में भी बहेलिया शिकारी जाल का उपयोग कर वन्यजीवों के शिकार की कोशिश कर रहे हैं।
2022 में कुडाशी तालुका में बाघिन फंसी थी।
2023 में तांबवे और सुपणे गांव में कुत्ते फंसे थे।
2025 में कासारशिंबे गांव में बिबट्या (तेंदुआ) बहेलिया जाल में फंसा।
जांच में पाया गया कि यह शिकारी जाल बहेलिया समुदाय द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले फंदे जैसा ही था। वन विभाग ने घटनास्थल की छानबीन के दौरान कर्नाटक से गन्ना काटने आए मजदूरों के पास से दो बहेलिया जाल, लोहे की तार से बना पिंजरा, धारदार लोहे की सलाखें, तीन शिकारी जाल, एक नायलॉन की रस्सी और क्लच वायर का फंदा बरामद किया।
28 जनवरी को वन विभाग ने पांच आरोपियों—प्रकाश बापूराव पवार, सुनील दिलीप पवार, विशाल दिलीप पवार, मिथुन भाऊराव शिंदे और भीमराव बाबूराव पवार—को गिरफ्तार किया। ये सभी आरोपी कर्नाटक के बीदर जिले के भालकी तालुका के रहने वाले हैं।
इस घटना के बाद यह सवाल उठता है कि क्या मध्यप्रदेश की ‘बहेलिया गैंग’ जंगल के पास बांस काटने वाले मजदूरों या वनौषधि बेचने वालों को भी अपने शिकार योजनाओं में शामिल कर रही है?
‘कटनी गैंग’ का बहेलिया जाल: खतरनाक शिकारी हथियार
मध्यप्रदेश के कटनी जिले की बहेलिया जाति बड़े वन्यजीवों, विशेष रूप से बाघों के शिकार के लिए कुख्यात है। इस गिरोह को ‘कटनी गैंग’ के नाम से जाना जाता है। ये शिकारी बेहद क्रूर तरीकों का इस्तेमाल करते हैं—
वे लोहे के शिकारी जाल, कुल्हाड़ी और भाले का उपयोग करते हैं।
बाघ को पकड़ने के लिए लोहे का फंदा लगाया जाता है, जिससे उसका एक पैर बुरी तरह फंस जाता है।
फंदे में फंसा बाघ एक निश्चित परिधि में ही घूम सकता है। शिकारी इस परिधि के बाहर खड़े होकर उसे डंडों से भगाते हैं।
जब बाघ डरकर इधर-उधर भागता है और थककर गिर जाता है, तब उसके सिर पर लकड़ी के भारी गट्ठे से वार किया जाता है ताकि उसकी खाल खराब न हो।
जब बाघ पूरी तरह कमजोर हो जाता है और गुर्राने के लिए मुंह खोलता है, तो शिकारी उसके मुंह में लोहे का भाला डाल देते हैं और फिर उसे बेरहमी से मारकर उसकी खाल उतारते हैं।
वन विभाग और वन्यजीव प्रेमियों को इस गिरोह की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है, ताकि महाराष्ट्र के बाघों को इस क्रूर शिकारी जाल से बचाया जा सके।
