अंधविश्वास मे शिकार, वन्यजीवन और पर्यावरण खतरे में

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यश कायरकर:
(9881823083)
हाल ही में सिंदेवाही तालुका के शिवनी वन परिक्षेत्र के दो शिकारियों को गढ़चिरौली जिले के दुर्गम क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया गया, जो अंधविश्वास के चलते अघोरी पूजा पाठ के लिए शिवनी वन परीक्षेत्र से वन्यजीवों का शिकार कर उनकी हड्डियां कथित तौर पर घर में और खेत में रखने के गुनेगार थे और जो कुछ दिनों से फरार हुए थे. इससे यह पता चलता है कि , हमारे देश में वन्यजीवोंके अंगों का उपयोग अघोरी पूजा और गुप्तधन के लिए किया जाता है.
जिसमें अंधश्रद्धा के लिए सांप, कछुए, बाघ, भालू, उल्लू, चमगादड़ जैसे हजारों जानवरों, पक्षियों की शिकार होती हैं. और यह पर्यावरण के प्रति विनाश को न्योता है. लोगों को धन की वर्षा, गुप्त धन प्राप्त करने, असाध्य रोगों को दूर करने, दैवीय शक्ति प्राप्त करने और यौन क्षमता बढ़ाने, समाज में झुटी भ्रांतियां फैलाते हैं, विभिन्न जानवरों, पक्षियों और सरीसृपों के अंग प्रदान करने के लिए तांत्रिकों और बुआ बाबाओं के द्वारा कहा जाता है. और इसके चलते हजारों जानवरों को मारा जाता है.
इसमें हमारे देश में अलग-अलग जानवरों के बारे में अलग-अलग अंधविश्वास पैदा किए गए हैं. सांप, मेंढक, कछुए जैसे सरीसृप. कौवे, उल्लू, चमगादड़ जैसे पक्षी, बाघ, भालू, मेंढक, बिल्लियाँ जैसे जानवरों को लेकर अलग-अलग अंधविश्वास हैं।
‘मालवन’ सांप के बारे में काफी अंधविश्वास है. और वे इस सांप का उपयोग कथित तौर पर गुप्तधन को खोजने के लिए करते हैं. इसलिए, इस सांप की उच्च मांग के चलते व्यापक रूप से तस्करी की जाती है. दरअसल, ईस सांप को दो मुंह वाला कहते हैं. पर वास्तव में सिर्फ एक मुंह होता है,इस सांप की पूंछ, इसके मुंह की तरह ही संकरी होती है, इसलिए दूर से देखने पर ऐसा लगता है कि इसके दो मुंह हैं इसलिए पाखंडी और तस्कर पूंछ के किनारे जलती अगरबत्ती या गर्म तार से आंखों जैसे छाले बनाते हैं. और चूंकि अंधश्रद्धा के कारण इसकी मांग और कीमत लाखों-करोड़ों में है जिस वजह से इस सांप की बड़ी मात्रा में तस्करी की जाती है और जिससे इसके अस्तित्व पर संकट निर्माण हो गया है.
‘कछुए’ के बारे में भी काफी अंधविश्वास है, जो छिपे हुए खजाने को खोजने, पैसे की बारीश करने के अंधविश्वास में ज्यादा वजनी, काले कछुए, बिस नाखुन वाले कछुए की तलाश में लाखों कछुए पकड़े जाते हैं.और इन कछुओं की बड़ी मात्रा में तस्करी की जाती है. कथित तौर पर पैसों की बारिश के सपने देख हजारों कछुए मारे जाते हैं. लेकिन आज तक कहीं भी पैसों की बारिश से कोई अमीर नहीं बना. लेकिन हजारों लोग जेल जा चुके हैं.
उसके बाद ‘उल्लू और चमगादड़’ जैसे पंछी उडने वाले जिव अंधविश्वास का शिकार हो रहे हैं. उल्लू को लक्ष्मी का वाहन माना जाता है और इसका उपयोग अघोरी पूजा के लिए किया जाता है. छिपे हुए खजाने की खोज, पैसे बरसाने, दूसरों को मंत्रमुग्ध करने जैसे अंधविश्वासों के कारण बेशुमार शिकार से इन पक्षियों की संख्या में काफी गिरावट आ रही है. जबकि ‘उल्लू’ चूहे की आबादी को नियंत्रित करने वाले किसान का दोस्त होता है.
इसके बाद बाघ, भालू, मेंढक, बिल्लियाँ, जैसे जानवरों के बारे में गलत धारणाएँ पैदा कर अंधविश्वास फैलाने और उनके अंगों का उपयोग करने वाले, पाखंडी बाबा अघोरी पूजा, और खाने में के रूप में इन जानवरों का शिकार और बड़ी संख्या में तस्करी की जाती है. यह भ्रांति है कि बाघ की खाल, धन की वर्षा, शारीरिक दुर्बलता को दूर करने के लिए , शत्रु का नाश करने के लिए भोजन में मूछों का प्रयोग, बाघ के दांत और नाखुनों का प्रयोग गले में ताविज पहनने से अच्छे दिन आएंगे, पर यह कोरा अंधविश्वास ही हैं।
‘पैंगोलिन (वज्रशल्क बिल्ली), ‘भालू’ इनकी, बुरी आत्माओं को दूर भगाने और अपनी यौन शक्ति को बढ़ाने के लिए भालू के नाखून,भालू के जननांगों का भी मूर्खता से उपयोग किया जाता है. लोगों के बीच इस तरह की तर्कहीन भ्रांतियां फैली हुई हैं. फलतः दीमक खाकर किसानों और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने वाले पैंगोलिन, भालू अंधविश्वास का शिकार होकर विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गयी हैं.
इन पाखंडीयों के द्वारा समाज में फैली भ्रांतियों, अंधविश्वासों और पशु अंगों की मांग के कारण हर साल हजारों जानवर, पक्षी, सांप पकड़े जाते हैं और मारे जाते हैं. इन न केवल शिकारियों पर बल्कि पाखंडी बाबाओं के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और जादू टोना विरोधी अधिनियम, 2013 के तहत भी सख्त कार्रवाई की जानी जरूरी है. साथ ही वन विभाग के लिए वन क्षेत्रों में लोगों को इस तरह की कट्टरता और अंधविश्वास के खिलाफ मार्गदर्शन और शिक्षित करना अनिवार्य हो गया है.
“अंधश्रद्धा के चलते जो वन्य प्राणियोंका अंगों के लिए शिकार किया जाता है, भ्रामक और कोरी अंधश्रद्धा है. इसके प्रति वन विभाग को अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति को साथ में लेकर जंगलों से सटे गांव में लोगों में जागरूकता फैलाना जरूरी है. और शिकार करने वाले शिकारियों के साथ-साथ शिकार करने के लिए करने उकसाने वाले बुआ बाबाओं पर अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून के अंतर्गत कार्रवाई करनी जरूरी है.” – हरीभाऊ पाथोड़े, अ.भा.अंनिस, महाराष्ट्र राज्य संघटक.
“बुआ बाजी ,जादू टोना , और कजली के लिए जंगली जानवरों के अंगों मांग पर भोंदू बाबाओं के बहकावे में लोग जंगली जानवरों की शिकार करते हैं. यह सरासर जुर्म है. जादू टोना के नाम पर वन्य प्राणियों की शिकार की वजह से पर्यावरण पर बहुत ही विपरीत परिणाम हो रहा है. ऐसे किसी भी घटना में शिकारियों को और बुआ बाबाओं को बक्सा नहीं जाएगा. और वन कानून के तहत और नए जादू टोना विरोधी कानून के तहत उचित कार्रवाई की जाएगी.” – बी.के.तुपे, वन परिक्षेत्र अधिकारी, शिवनी

यश कायरकर, (9881823083)

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