सरकारी कार्यालय से वन अधिकार दावों के गुम होने का गंभीर मामला
वन अधिकार अधिनियम 2006 में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तब पारित किया गया था ।
चूंकि इस कानून को ठीक से लागू नहीं किया गया था। इसलिए 16 साल बाद भी आदिवासियों के खिलाफ स्टँड लेने का समय आ गया है।
आज 24 मार्च 2022 को श्रमिक एल्गर अध्यक्ष प्रवीण चिचघरे, उपाध्यक्ष घनश्याम मेश्राम, महासचिव ॲड.कल्याण कुमार के नेतृत्व में सैकड़ों आदिवासी अत्यंत दुर्गम माने जाने वाले चंद्रपुर जिले की जिवती तहसील में पहुंचे।
जिवती तालुका में आदिवासी वन अधिकार धारक तहसील कार्यालय में भिड़ गए और “लड़ेंगे और जीतेंगे” वन अधिकार धारकों को मिलना चाहिए यह घोषणा लगायी।
मोर्चा के दौरान कई गंभीर मुद्दे उठाए गए। सबसे गंभीरता से, आदिवासियों ने शिकायत की कि सरकारी कार्यालयों से सैकड़ों आदिवासी आवेदन गायब थे।
आदिवासियों के सारे दावे गायब हो गए हैं फिर से आवेदन और दस्तावेज कहां से मिलेंगे?
आदिवासी नेता घनश्याम मेश्राम ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया।
मोर्चाकारों ने मांग की कि तहसील कार्यालय लापता वन अधिकार दावों की जांच कर नए दावे तैयार करें और लापता वन अधिकार कर्मचारियों की जांच कर आपराधिक कार्रवाई करें ।
वन अधिकार पट्टाधारकों को 7/12 देने, वन अधिकार पट्टाधारकों को फसल ऋण लीज आधार पर देने, नायकपोड़ आदिवासियों को वन अधिकार दावा दायर करने की पहल करने की भी मांग सामने से की गई।
मोर्चा वीर बाबूराव ने नारेबाजी करते हुए शेडमेक चौक से तहसील कार्यालय पर धावा बोल दिया।
इस समय श्रमिक एल्गारचे अध्यक्ष प्रविण चिचघरे, उपाध्यक्ष घनशाम मेश्राम, महासचिव डॉ. कल्यान कुमार ने मार्गदर्शन करते हुए विभिन्न मांगों के आवेदन दिए।
इस समय श्रमिक एल्गार के कार्यकर्ता लक्ष्मण मडावी, विमल कोडापे, सुरेश कोडापे, आनंदराव कोडापे, इसतराव कोटणाके, भिमराव मडावी, जलिम कोडापे, पुजू कोडापे, इसी के साथ आदि ने मोर्चा को सफल बनाने के लिए कड़ी मेहनत की।