
भंडारा :
न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी (JMFC), मोहाड़ी ने जंगली सूअर के अवैध शिकार और उसके मांस के सेवन के मामले में 10 आरोपियों को दोषी करार दिया है। यह कानूनी लड़ाई पांच साल तक चली, जिसके दौरान एक आरोपी की मृत्यु हो गई।
यह मामला 10 अप्रैल 2019 का है, जब कोका वन्यजीव अभयारण्य के वन विभाग को गुप्त सूचना मिली कि कुछ लोग धीवरवाड़ा गांव (भंडारा जिला) में जंगली सूअर का मांस पका रहे हैं।
रेंज वन अधिकारी (RFO) सचिन जाधव ने तुरंत अपनी टीम के साथ रवि वानवे और गणेश वानवे के घर पर छापा मारा, जहां आरोपियों को रंगे हाथ पकड़ा गया।
जांच और आरोपियों की स्वीकृति:
पूछताछ के दौरान, रवि वानवे और गणेश वानवे ने स्वीकार किया कि उन्हें 2.5 किलोग्राम जंगली सूअर का मांस अन्य 9 व्यक्तियों से प्राप्त हुआ था, जिन्होंने मिलकर इस जंगली जानवर का अवैध शिकार किया था।
वन विभाग ने इस मामले में सभी 11 आरोपियों के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन:
भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत जंगली जानवरों का शिकार करना, उनका मांस बेचना या खाना कानूनन अपराध है।
जंगली सूअर को शेड्यूल III प्रजाति में रखा गया है, जिसका शिकार विशेष अनुमति के बिना गैरकानूनी है।
न्यायिक प्रक्रिया और फैसला:
इस मामले में 5 साल तक चली कानूनी कार्यवाही के बाद, न्यायाधीश बी. आर. पाटिल ने सभी 10 आरोपियों को दोषी ठहराया।
अदालत ने सभी आरोपियों पर मात्र ₹1,000 का जुर्माना लगाया, जिसे कुछ विशेषज्ञ हल्की सजा मान रहे हैं।
वन विभाग का बयान:
वन अधिकारियों का कहना है कि यह फैसला अवैध शिकारियों के लिए चेतावनी है कि वे इस तरह के अपराधों से बचें।
कोका वन्यजीव अभयारण्य के पास वन्यजीवों के अवैध शिकार की पहले भी घटनाएं सामने आई हैं, और वन विभाग ने सख्ती से ऐसे मामलों पर नजर रखने की बात कही है।
मामले का महत्व:
इस केस से यह स्पष्ट होता है कि वन्यजीव संरक्षण कानूनों का पालन करना अनिवार्य है, और वन्यजीवों के शिकार या उनके मांस के सेवन से कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि वन्यजीवों का संरक्षण पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है, और इस तरह के मामलों में सख्त सजा होनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं रोकी जा सकें।
