(पखवाड़े में चंद्रपुर जिले में बाघ के हमले की चौथी घटना, चिमूर तालुका में तीन किसानों/चरवाहे की मौत, और तलोधी बा.अप्पार तालुका में एक महिला किसान की मौत)
कल एक बार फिर चिमूर तालुका के बाम्हनगांव निवासी की मौत की घटना सामने आई है. इस तरह के बाघ के हमले में इस पखवाड़े में ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व के बफर में एक की मौत हो चुकी है, जबकि ब्रम्हपुरी वन विभाग ब्रम्हपुरी में एक सप्ताह के भीतर तीन किसानों की मौत हो चुकी है। विस्तृत जानकारी के अनुसार, तीन घटनाएं चिमूर तालुका में और एक तलोधी (बा) अप्पर तालुका में हुई।
पहली घटना में चिमूर तालुका के सावरगांव (नेरी) में एक किसान की खेत के बाढ के लिए बल्लीया तोड़ते वक्त जंगल परिसर में मौत थी, दूसरी घटना एक महिला की खेत में काम करते वक्त मौत तलोधी बालापुर क्षेत्र के अकापुर में , उसके बाद तीसरी बार चिमूर तालुका के शंकरपुर क्षेत्र में डोमा यहां एक चरवाहे की मौत अपने बैल को बचाते हुए, और अब फिर चौथी घटना चिमूर तालुका के बम्हनगांव के किसानों की भी अपने बैल को बाघ के चुंगल से छुड़ाते हुए मौत की हो गई है। यह घटनाएं लगातार अलग-अलग जगहों पर, अलग-अलग तरीके से हो रही हैं, कभी बाघ की गलती से तो कभी चरवाहे/ किसान की गलती से, एक पखवाड़े में इस बाघ के हमले में चार लोगों की मौत हो गई थी इससे वन विभाग और इलाके में हड़कंप मच गया है।
लेकिन इस तरह की घटनाओं के बाद ज्यादातर अखबारों में जानकारी के अभाव या खबरों की जरूरत के कारण यही लिखा गया या लिखा जाता हैं कि *’किसान दहशत में, बाघ का आतंक, क्षेत्र में नरभक्षी बाघ, वनविभाग सो रहा है, बाघ का बंदोबस्त करो, पकड़ो या बाघ को तुरंत मारें या मारने की इजाजत दें।’ ‘बाघ को नरभक्षी मानकर तुरंत पकड़ने या मारने की मांग की जाती है। और वास्तव में बाघों को बड़ा आतंकवादी घोषित कर दिया जाता है’*
लेकिन ऐसी घटनाओं में वास्तविक स्थितियों और घटनाओं के स्थानों का परिस्थिति का अध्ययन करने के बाद, सत्य स्थिति का एहसास होता है कि बाघ ही वास्तव में गलत है या बुद्धिमान व्यक्ति की गलती है ? और फिर सवाल उठता है कि क्या ये सच में बाघ का आतंक है या बाघ’ ही आतंक में है.?
इस मामले की जानकारी न केवल वन्यजीव प्रेमियों को बल्कि वनविभाग और क्षेत्र के हर जानकार को भी है। लेकिन इस बारे में उनकी राय किसी भी अखबार में व्यक्त नहीं की जाती है और फिर वनविभाग से चर्चा के बिना भी बाघ को नरभक्षी और अपराधी , दहशतगर्द है यह घोषित किया जाता है।
एक ओर जहां बाघ संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर अरबों रुपये का खर्चा करके बाघों की संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जाता है, जो प्रकृति श्रृंखला में सर्वोच्च स्थान पर है और वन संरक्षण के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी है। मगर उसके विपरीत परिस्थितियों बाघ द्वारा कोई इंसान मार दिया जाता है और बाघ दोषी करार दिया जाता है और स्थायी रूप से एक पशु संग्रहालय में बंद कर दिया जाता है। और बाघ संरक्षण और संवर्धन परीयोजना को तिलांजलि दी जाती है। और ऐसे मे सोचना ज़रूरी हो जाता है कि बाघ की दहशत हैं या खुद बाघ ही दहशत में है ?
बाघ के हमले में मानव वन्यजीव संघर्ष के कारण
बाघ के शिकार करते समय बाघ के मुँह से मावेशियोंको बचाने की कोशिश करना, जंगल के निकटवर्ती इलाके में या जंगल में अतिक्रमण करना, और जंगल में लकड़ी काटने, सागौन काटने या जंगल के अंदर जंगली फल इकट्ठा करने के लिए जंगल में बेसावध , बेबाक प्रवेश करना, जिस क्षेत्र में बाघ का अधिवास है फिर भी जीवन की परवाह किए बिना क्षेत्र में प्रवेश/उपयोग करने पर मानव हताहत होने की उच्च संभावना होती है।
ऐसी घटनाओं से कैसे बचा जा सकता है ? इस पर क्या कदम उठाये जाने चाहिए ? वनमंत्री, तथा वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। ताकि इस घटना को पूरी तरह नहीं तो कुछ हद तक कैसे रोका जाएगा? इसके लिए वन विभाग को अपने साथ पर्यावरण मित्रों, एवं पर्यावरण प्रेमियों के सहयोग से कार्य करना अति आवश्यक है। बाघों के हमले की ऐसी घटनाओं के बाद प्रति मृतक 20 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने, करिबन सरासरी प्रति माह करोड़ों रुपये खर्च करने के बजाय यदि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कुछ हजार रुपये ही खर्च किये जाएं तो ऐसी घटनाओं की संख्या पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। लेकिन इस मामले में भी कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की उदासीनता, प्रबोधन के प्रति गंभीरता की कमी ही कारण है।
इस समय खेती का मौसम चल रहा है और क्षेत्र में धान की रोपनी का कार्य चल रहा है। इसके लिए किसान बड़े पैमाने पर खेतों के कार्य में व्यस्त हैं। वहीं, ऐसी किसी भी अप्रीय घटना के बाद उस इलाके के किसानों में डर का माहौल बनना स्वाभाविक है. हालाँकि, अखबारों में कुछ अतिरंजित खबरें अधिक भय पैदा करती हैं और लोगों में बाघों और वनविभाग के प्रति नफरत और गुस्सा भी पैदा करती हैं। और साथ ही, खेत पर जाना या खेत में काम करने के लिए मजदूरों को लाना मुश्किल होने से किसानों की आजीविका भी बाधित होती है।
जंगल के पास के ग्रामीणों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे इस जंगली जानवर से कैसे अपनी रक्षा करें। वनविभाग को यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।’
– यश कायरकर,
–वन्यजीव अभ्यासक, अध्यक्ष ‘स्वाब’ नेचर केयर संस्था