ताडोबा के गाँवों के पुनर्वास बाद नए घास के मैदानों को वैज्ञानिक तरीके से विकसित

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चंद्रपुर के वन्यजीव अभ्यासक एवं संस्था के प्रतिनिधीयो ने किया ने किया निरीक्षण

चंद्रपूर : (मोहम्मद सुलेमान बेग)

ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प में गाँवों के पुनर्वास बाद नए घास के मैदानों में  पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का निरीक्षण करणे हेतू हर साल की तरह चंद्रपूर के  अभ्यासक एव संस्था के पदाधिकारी ने 19 फरवरी 2023 को सुबह 8.30 के करीब ताडोबा में गाँवों के पुनर्वास बाद नए घास के मैदानों का निरीक्षण दौरा ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प के क्षेत्र संचालक डॉ. जितेंद्र रामगावकर के मार्गदर्शन मे  मिनीबस से क्षेत्र सहाय्यक विलास सोयाम एवं वनरक्षक ने संबोधित किया।


पुनर्वास बाद नए घास के मैदानों मे रहने वाले सभी प्रकार के वन्यजीव और शिकार प्रजातियों के लिए आवश्यक चराई, छिपने और प्रजनन करने को जगह प्रदान करते हैं।
वहां कुछ विशिष्ट क्षेत्र हैं जिसमें घास के मैदानों मे कुछ जड़ी-बूटियों, झाड़ियों और जंगली फलीदार पौधों के निरंतर आवरण में वनस्पति का प्रभुत्व है। यहां तीन प्रकार की घास हैं जो छोटी, मध्यम और लंबी होती हैं।

यहां की जमीन घास और पौधों की जड़ें मिट्टी के पानी की नमी को बनाए रखती हैं और गर्मी के मौसम में इसे वाष्पीकरण से बचाती हैं जिससे मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने में काफी मदद मिलती है। ताडोबा परिदृश्य के 7 से 9% घास के मैदान की लगभग 885 हेक्टर भूमि मे है।

मध्य भारत में घास के मैदान लम्बे और मध्यवर्ती प्रकार के होते हैं लेकिन विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के लिए घास के मैदानों का वार्षिक रूप अपनाया जाता है।
भारत के भौगोलिक क्षेत्र का कुल 24% घास के मैदानों से आच्छादित है जो जंगली प्रजातियों और खरपतवारों के आक्रमण के कारण तीव्र गति से घट रहे हैं। भारत मे घास के मैदान मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं,  सबसे बड़ी घास कच्छ से बन्नी गुजरात में पायी जाती है।

ताडोबा अंधेरी टाइगर रिजर्व क्षेत्र के भीतर कोई प्राकृतिक चरागाह नहीं है।  हालाँकि नवेगांव, जामनी, पांढरपौनी और पळसगाँव जैसे गाँवों के पुनर्वास के बाद नए घास के मैदानों को वैज्ञानिक तरीके से विकसित और प्रबंधित किया गया है।
ताडोबा के नवेगांव, जामनी, पांढरपौनी और पळसगाँव क्षेत्र के 230  हेक्टर के जमीन पर घास के अलग-अलग प्रकार की 24 प्रजातियां दिखाई दी उनके मराठी नाम  मोठा मारवेल गवत, लहान मारवेल गवत, रवी गवत, शिक्का गवत, मोशन गवत, कुसळ गवत, घोण्याळ गवत, वटाना गवत, पडयाळ गवत, सुरवेल गवत, रान बाजरा गवत, दाताड गवत, देवधान गवत, रानतूर गवत, रानमुंग गवत, हेटी गवत, दूब गवत, रान बरबटी, गोंडाळी गवत,जंगली नाचणी, क्रो फ्रुट, बेर गवत, दुर्वा गवत है ।
साथ  ही बेकार घास को हटाने के लिए समय पर पहचान करनी होगी है और उसे फलने से पहले साल मे  दो से तीन उखाडा जाता है। उनमे भुतगांजा, तरोटा, चिकना, लेंडुली, चिपडी, आघाडा, पांढरा चिकवा, फेटरा गवत, कोंबडा गवत ,दिवाळी गवत, गाजर गवत, रेशीम काटा यह प्रजाती को निकाला जाता है।

मोहा, बोर, बेहडा,आवडा, आंबा, जांभूळ, चीच, सिताफळ, जांब, नींबू, फणस, उंबर, बांबू, कडू निंब, वडाचे झाड, पिंपळाचे झाड, फेटरा, सिंन्दू, इग्रेजी चीच, पाकळी झाड, फणस झाड ऐसे फल के झाड भी वहां देखा गया है।
जानकारी के मुताबिक इस क्षेत्र में सुबह शाम हजारों की संख्या में सांबर, चीतल दिखाई देते हैं और साथ ही इस क्षेत्र में बाघ तेंदुए भी अधिवास हैं और साथ ही इस क्षेत्र में पक्षी भी बड़ी संख्या में दिखाई देते है  ऐसा  वनविभाग के मोहर्ली के क्षेत्र सहाय्यक विलास सोयाम ने वन्यजीव अभ्यासक एवं संस्था के प्रतिनिधीयो को निरीक्षण दौरान बताया।

इस अवसर पर प्रो.सुरेश चोपने ग्रीन प्लॅनेट सोसायटी, प्रो. योगेश दूधपचारे ग्रीन प्लॅनेट सोसायटी, सौरभ डोंगरे ईअर्स फाउंडेशन, अजय पोद्दार (टीईआर) ट्रस्ट फॉर इकोलॉजिकल रीस्टोरेशन, एचसीएस हैबिटेट कंजर्वेशन सोसायटी के दिनेश खाटे , शशांक मोहरकर ,करण तोगत्तीवार, पिंटू उईके ,  सेविंग एंड कंझर्विंग फॉरेस्ट (एससीएफ) ट्रस्ट एवं वन समाचार के मोहम्मद सुलेमान बेग, भाविक येरगुडे सार्ड संस्था, मनीष नाईक टीआरईई फाउंडेशन, अमोद गौरकर तरुण पर्यावरण वादी संघटना शंकरपुर आदी मौजूद थे। सभी ने वनविभाग के कामों  की तारीफ़  की।

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