( गलती किसकी ? और सजा किसे ? बाघ पकड़ने से वन्यजीव प्रेमियों में निराशा )
जिल्हा प्रतिनिधी (यश कायरकर),
2 दिन पूर्व चिमूर तहसील के शेगाव पुलिस स्टेशन अंतर्गत खानगांव के एक व्यक्ति को एक बाघ ने मार दिया था। इसके बाद में लोगों द्वारा हल्ला मचाया गया था। इसके बाद वनविभाग की टीम ने मौके पर कैमरे ट्रैप लगाकर बाघ की शिनाख्त थी । जिससे पता चला कि कुछ दिन पूर्व नीमढेला गेट परिसर (रामदेघी की परिसर) में दो व्यक्तियों को मारने वाला और खानगांव के व्यक्ति को मारने वाला एक ही बाघ होने की पुष्टि हुई। यह जानकारी हासिल होते ही वनविभाग की रेस्क्यू टीम तुरंत हरकत में आ गई और तत्काल ही बाघ की गतिविधियों को देखते हुए इसमें दोषी पाए गए बाघ को आज 18 मई को सुबह पकड़ने में वन विभाग को कामयाबी मिली है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार ताडोबा के खडसिंगी क्षेत्र में नीमढेला नियतक्षेत्र और नीमढेला बीट के कंपार्टमेंट नंबर 59 में भानुसखिंडी नामक बाघिन का प्रसिद्ध शावक जिसकी उम्र दो से ढाई साल अनुमानित है। उसे वनविभाग ने ट्रेंकुलाइज कर पकड़ लिया और प्राथमिक जांच के बाद उसे गोरेवाडा भेजा गया।
यह कार्यवाही डॉ. आर. एस. खोब्रागडे, पशुवैद्यकीय अधिकारी (वन्यजीव) ता. अं. व्या. प्र. चंद्रपूर , तथा आर आर टी प्रमख , ए.सी.मराठे, पोलीस नाईक,(शुटर)ता. अं. व्या. प्र. चंद्रपूर, राकेश आहुजा (बायोलॉजिस्ट),RRT सदस्य दिपेश डि.टेंभुर्णे, योगेश डि.लाकडे, गुरुनानक .वि.ढोरे, वसीम.ऐन.शेख, विकाश.एस.ताजने,प्रफुल.एन.वाटगुरे, ए. डी. कोरपे RRT वाहन चालक, ए. एम. दांडेकर, RRT
वाहन चालक इनके द्वारा की गई।
इस कारवाही से ग्रामीण लोग तो खुश, पर वन्यजीव अभ्यासक और वन्यजीव प्रेमीयों में सख्त नाराजगी
स्थानीय लोगों ने इस बाघ को पकडते ही राहत की सांस ली होगी मगर वन्यजीव अभ्यासक और पर्यावरण प्रेमी लोगों द्वारा इस कार्रवाई पर नाराजी व्यक्त की गई। जिसमें कुछ सवाल भी उठाए गए। जैसे की इस बाघ के शावक द्वारा कुछ महीनो में तीन लोगों को मार दिया गया। मगर इससे यह साबित नहीं होता कि यही बाघ नर भक्षक ही था ? जिसे क्या तुरंत पकड़ना जरूरी था ? क्योंकि ताडोबा अभयारण्य बाघों के लिए प्रसिद्ध है और इस बात के चलते हुए नीमढेला गेट परिसर में लगातार पर्यटकों की भीड़ लगी रही थी। मगर अगर यह बाघ नरभक्षक होता तो कई लोगों द्वारा इसे जी जिप्सी से सिर्फ 20 – 25 फीट दूरी पर से ही कमरे में कैद किया गया लेकिन इसने कभी भी किसी जिप्सी का पीछा करते हुए किसी पर्यटक पर हमला नहीं किया था । मगर खामगांव की दुखद घटना होने के पूर्व जो दो घटनाएं हुई थी। वह दोनों ही इसमें लोगों ने जंगल में जाकर अपनी गलती से इस बाघ का निवाला बने थे। अगर ऐसा ही चलता रहा, लोग जंगल में जाते रहे , और अपनी ही गलती से मरते रहे, और वन विभाग द्वारा लोगों का बंदोबस्त करने की बजाय अगर बाघों का ही बंदोबस्त करने का सफरनामा चलता रहा तो,.. वह दिन दूर नहीं जब ताडोबा जंगल में सिर्फ बोर्ड पर ही बाघ दिखेंगे जैसी स्थिति नवेगांव बांध, और नागझीरा इन अभयारण्यों की हो चुकी है। शायद अब जब प्रसिद्ध ताडोबा की बारी ना आ जाए ? इसलिए बाघों को ही पकड़ने की बजाय लोगों में जागरूकता लाना और कड़े से कड़े कदम उठना भी अभी वन विभाग के लिए जरूरी हो गया है। और ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार कौन है ? इसकी पूरी तरह से जांच होने के बाद में ही ऐसी कार्रवाई होनी चाहिए जिससे कि गलती कोई और करें और सजा बेजुबान बाघों को ही क्यों मिले । इस तरह की प्रतिक्रिया कुछ पर्यावरण वादी संस्थाओं द्वारा व्यक्त की गई है।