भारत में चीतों का इंतजार खत्म, जल्दी दौड़ते नजर आयेंगे देश के जंगलों में

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यश कायरकर (तलोधी बा.); चीता (Cheetah) दुनिया का सबसे तेज 110 से 120 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ने वाला 50 से 60 किलो वजनी और 13 साल की उम्र तक जीने वाला चीता अन्नशृखला में सर्वोच्च स्थान पर हैं। दुनिया में अफ्रीकी 17 देशों में पाए जाते हैं, और पूरे विश्व में सिर्फ 7000 संख्या में बचे हुए हैं । जो आज से लगभग 70 साल पूर्व बेशुमार शिकार के चलते विलुप्त हो चुके थे। 1948 में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के साल के खुले जंगल में वहां के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने इन अंतिम बचे तिन 3 चीतों का शिकार किया जिसके बाद देश में से चिते खत्म हो गए और 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया।

भारत में चीतों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण उनका बढ़ता शिकार था. आजादी से पहले देश में कई राजा-महाराजा हुआ करते थे. जो अपने मनोरंजन के लिए जानवरों का शिकार किया करते थे ।आखिरी चीतों को मारने वाले महाराजा रामानुज प्रताप सिंह ने भी कई बाघ, तेंदुआ, चीतल, हिरण जैसे सैकड़ों जानवरों का शिकार किया था. हालांकि, चीतों की ये संख्या अचानक नहीं घटी. भारत लंबे समय तक मुगलों से लेकर अंग्रेजों का गुलाम रहा था. मुगलों और अंग्रेजों के दौर में चीतों का खूब शिकार किया गया. भारत की छोटी-छोटी रियासतों के राजा भी अंग्रेजों को अपनी रियासत के जंगलों में शिकार के लिए निमंत्रण देते थे. 19वीं सदी की शुरुआत में ही चीते लुप्त होने के कगार पर पहुंच गए थे. और, देश की आजादी के बाद ये पूरी तरह से लुप्त हो गए. इस तरह हमारे भारत से पूरी तरह से विलुप्त हो चुके चीते आज फिर से हमारे भारत देश में पुनर्वसन के लिए लाए गए हैं. जो नामेबिया से करीब 11 घंटे का सफर करने के बाद चीते भारत पहुंच चुके हैं।


किसी भी देश से दूसरे देश में जंगली जीवों का प्रत्यर्पण करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाता है. पहला कि जिस देश से चीता आ रहा है, क्या वह देश लगातार कुछ सालों तक चीतों की सप्लाई करता रहेगा. चीतों का जेनेटिक्स कैसा है । व्यवहार कैसा है. उम्र सही है या नहीं. लिंग का संतुलन कैसा है. साथ ही चीते नामीबिया से आकर मध्यप्रदेश के वातावरण, रहने लायक जगह की स्थिति, शिकार के प्रकार आदि से एडजस्ट कर पाएगा या नहीं और चीतों का मुल निवास और जहां पुनर्वासित करने वाले हैं उस जगह का पर्यावरण, वातावरण, उपयुक्त हवामान, पर्याप्त मात्रा में मौजूद शिकार, चीते को ग्रासलैंड यानी थोड़े ऊंचे घास वाले मैदानी इलाकों में खुले जंगलों में रहना पसंद आदी यहां पर चीतों के सर्वाइव करने की संभावना सबसे ज्यादा है. इसी वजह से मध्यप्रदेश का कूनो नेशनल पार्क अफ्रीकन चीतों के लिए चुना गया है। और जो नामेबिया से जो चीते लाये गये है, इस मे 5 मादा और 3 नर चीता है । 2 नर चीतों की उम्र साढ़े पांच साल है। दोनों भाई हैं। 5 मादा चीतों में एक २ साल, एक ढाई साल, एक 3 से 4 साल और 2 पांच-पांच साल की हैं। सुत्रो के नुसार चीतो को 30 दिन तक क्वॉरंटीन रखा गया है। इस दौरान इन्हें बनाये गये विशेष बाड़े के अंदर रखा जाएगा। और बाड़े में उनके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाएगा और अन्य गतिविधियों पर नजर रखी जाएगी। वन विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि बाड़े के चारों ओर मचान का निर्माण किया गया है।  यहां रोस्टर के अनुसार ड्यूटी लगाई जाएगी।  जो 24 घंटे चीतों की निगरानी करेगा।  पशु चिकित्सकों के भी अलग-अलग ड्यूटी लगाई गई है। कुछ संभावित दिनों बाद सभी चीतों को जंगल में छोड़ दिया जाएगा। और देश से विलुप्त हो चुके चीते फिर से भारत के जंगल में दौड़ते हुए नजर आयेंगे।

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