अज्ञात वाहन के टकराने से नीलगाय की मौत ; रोड दुर्घटनाओं में हमेशा शेकडो वन्यजीव मारे जाते है

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जिल्हा प्रतिनिधी ( यश कायरकर ):
मूल नागपुर हाईवे पर घोड़ाझरी अभयारण्य के नजदीक नागभिड वन परीक्षेत्र में आने वाले तिवर्ला तुकूम के नजदीक रात को किसी अज्ञात वाहन की टक्कर से करीबन 2 से ढाई साल उम्र की मादा नीलगाय (रोई) मारी गई.

घटना की जानकारी मिलते ही, झेप संस्था के अध्यक्ष पवन नागरे और उनके सदस्य मौके पर पहुंचे,और वन विभाग को सूचना दी, पश्चात मिंडाला के क्षेत्र सहायक मनोज तावाडे मिंडाला क्षेत्र, वनरक्षक सी.एस. कुथे, ए.डब्लू. बोरकर वनरक्षक रेंगातूर बिट, इन्होंने रात को ही मौका पंचनामा कर मादा नीलगाय को दफन कर दिया।


इस क्षेत्र में लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जिसमें कभी वन्य जीवन तो कभी लोगों को भी अपनी जान गंवानी पड़ती है । नागपुर-मूल-चंद्रपुर राजमार्ग ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व, करंडला अभयारण्य, और घोड़ाझरी अभयारण्य से होकर गुजरता है। हाईवे होने के कारण इस सड़क पर वाहन काफी तेज गति से चलते हैं। चूंकि यह सड़क जंगल से होकर गुजरती है और यह वन्य जीवों का भ्रमण मार्ग है, इसलिए सड़क पर जंगली जानवरों का आना-जाना लगा रहता है। इन तीनों में से किसी भी स्थान पर कभी दोपहिया वाहनों से तो कभी बड़े वाहनों से टक्कर में जंगली जानवर हमेशा गंभीर रूप से घायल हुए हैं या मर गए हैं। लेकिन इन सड़क हादसों में सिर्फ निलगाय ही नहीं बल्कि बाघ, तेंदुआ, भालू, सांभर, जंगली सुअर, भेड़िये, लोमड़ी जैसे बड़े जानवर और सांप, नेवला, कछुआ, गोह जैसे बड़े रेंगने वाले जानवर भी बड़ी संख्या में मारे जा रहे हैं।
इस गंभीर समस्या को केवल वन विभाग, या वन्यजीव प्रेमी, पर्यावरणवादी संगठन के सोचने-समझने से ही नहीं सुलझा सकते। जबकि सड़क निर्माण विभाग भी जंगल के समीप घनी आबादी वाले क्षेत्रों में सड़क निर्माण करते समय इस गंभीर मामले को समझता है। सड़क हादसों में वन्य जीवों की हो रही हानि पर गंभीरता से विचार करते हुए। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि सड़कों के निर्माण के दौरान जिन स्थानों पर जंगली जानवरों के घूमने के रास्ते हैं, उन जगहों पर केवल ‘स्पीड ब्रेकर’ बनाकर या सुचना फलक लगाने से सड़क पर गुजरने वाले वाहनों की गति सीमा को कम करके इन दुर्घटनाओं को टाला नहीं जा सकता है। और ऐसे वन्य जीवों के दुर्घटना स्थल पर *उड़ान पुल’* का निर्माण या यह संभव न हो तो रेलवे की तरह *सुरंग* का निर्माण किया जाए। ताकि ऐसे रास्ते पर किसी वन्य जीव को टकराकर कोई मनुष्य हानि या किसी बड़ी वाहन से टकराकर वन्यजीव की हानि को टाला जा सके।
और वन विभाग की ओर से वाहनों की गति को नियंत्रित करने के लिए सिर्फ सुचना फलक (साइन बोर्ड) लगाना काफी नहीं होगा. इसलिए यदि ऐसी जगहों पर सुरंगें हैं तो उन्हें उस जगह को छोड़ देना चाहिए और सड़क के दोनों ओर जालियां लगा देनी चाहिए ताकि जंगली जानवर अचानक सड़क पर आ जाएं और दुर्घटनाएं न हो सकें। सुरंग तक की जगह को बंद कर दिया जाए और ऐसी व्यवस्था की जाए कि जानवर उसमें से आ-जा सकें। ताकि जंगली जानवरों को सड़क पर आकर अपनी जान नहीं गंवानी पड़े। अब जरूरत इस बात की है कि सरकार इस मामले को समझे और इस पर गंभीरता से विचार करे और दोनों विभागों के माध्यम से योजना बनाए।
“रास्ते बनाए जाने चाहिए पर जहां जहां से वन्यजीवों का भ्रमण मार्ग है वहां वहां से छोटे-छोटे उड़ान पुल(ओवर ब्रिज), बोगदे (अंडर पास) भी बनाए जाने चाहिए। तो पर्यावरण वन्य जीव संरक्षण के साथ-साथ उन से टकराकर इंसानी मौतों की संख्या भी कम की जा सकती है या रोकी जा सकती है। जिस तरह मुख्य मार्गों पर शहरों में उड़ान पुल, और गांवों में अंडर पास बनायें जातें हैं, उसी आधार पर अगर हम जंगलों से गुजरने वाले रास्तों पर भी कुछ-कुछ जगह पर उड़ान पुल, या बोगदे बना दे तो और भालू, तेंदुए, बाघ, हिरन, निलगाय, सुअर जैसे वन्यजीव रास्तों पर आना, दुर्घटनाओं में मारे जाना, ट्राफिक की लाइन लगना, बाइक सवार का बाल बाल बचना, एसटी बस पलट जाना, या ट्रेन के डिब्बे किसी जानवर से टकराकर या उसे बचाने के लिए पटरी से उतर जाना, ऐसी समस्याओं से हम हमेशा के लिए छुटकारा पा सकते हैं” – अध्यक्ष ‘स्वाब’ नेचर केयर संस्था.

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