ताडोबा की वनरानी का संघर्ष

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विश्व प्रसिद्ध ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प बाघों के लिए प्रसिद्ध है। यहा सैलानियो का आना जाना लगा रहता है। ताडोबा में लंबे संघर्ष के बाद महिला पर्यटक मार्गदर्शक को शामिल किया गया।  जिसकी शुरुआत महाराष्ट्र की पहली महिला गाईड ताडोबा से हुई थी।  2014 तक, ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प में पर्यटन क्षेत्र मे जंगल सफारी पर गाईड के काम के लिए पुरुषों तक ही सीमित था।

वनविभाग ने इस काम के लिए महिलाओं के बारे में कभी नहीं सोचा था।  चंद्रपुर जिले के मोहर्ली गांव की रहने वाली शहनाज बेग ने यह सोचा । शहनाज का  जन्म छोटेसे  मुस्लिम परिवार मे 1980 में ताडोबा में हुआ था। उनके पिता ताडोबा में वन मजदूर थे।  शहनाज का पूरा बचपन ताडोबा में बीता। ताडोबा से जुडी काफी यादे है शहनाज को ताडोबा का चप्पा चप्पा मालू है। विवाह के बाद कंक्रीट के शहर में उनका मन नहीं लग रहा था । ताडोबा की याद, पंछियों की आवाज, वहां की हरियाली को देखने के लिए तरस जाती थी।शहर मे उसे घुटन सी महसूस होती थी। तब उसने हठपूर्वक अपने पति को मनाया और दोनो ताडोबा में वापस आ गए । उन्होंने उपजीविका के लिए एक NGO में काम करना शुरू किया। कुछ समय बाद NGO का काम बंद हो गया।  NGO की मैडम क्लाउडिया ने शहनाज को गाईड बनने की सलाह दी।  क्लाउडिया के साथ कई बार जंगल सफारी पर जाने के बाद उन्हें लगा कि शहनाज एक अच्छी गाईड बन सकती है और उसे जंगल की जानकारी है । उसके बाद शहनाज ने 2010 मे महिला टूरिस्ट गाईड के लिए  वनविभाग के आला अधिकारियों से पत्राचार शुरू कर दिया।

पर्यटन के क्षेत्र में जो कई वर्षों से गाईड का काम  पुरुषों द्वारा ही चलाया जाता था, इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं थी।  इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जिले के एक स्थानीय संगठन श्रमिक एल्गर ने इस काम में शहनाज का पूरा सहयोग किया। शहनाज बेग श्रमिक एल्गर की कार्यकर्ता हैं।
वनविभाग के कई अधिकारियों ने अनदेखी की।  2014 मे एक CCF गणपति गरड़ ताडोबा मे आए और शहनाज ने महिला गाईड के विषय पर चर्चा की। उन्हें महिला गाईड का प्रस्ताव पसंद आया और अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर 2015 में शहनाज बेग के प्रस्ताव को मंजूरी दी। और अपने साथ और महिलाओ शामिल करने बोले । उस समय टूरिस्ट गाईड के लिए महिलाओं को कोई जगह नहीं थी, उस जगह को शहनाज ने संघर्ष के जरिए बनाया।

हमेशा से समाज में बदलाव लाने में महिलाओं के योगदान को देखा गया है।  महिलाए  अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कई चुनौतियों का सामना करती है। सवाल यह उठता है कि क्या महिलाएं इस तरह की कड़ी मेहनत के अवसरों का फल पाने में सक्षम हैं ?

महिला पर्यटक गाईड के रूप में शामिल होने के लिए गांव के पुरुषों के साथ-साथ वन विभाग के अधिकारियों के खिलाफ भीषण संघर्ष के बाद, शहनाज बेग ने आखिरकार 2015 में श्रमिक एल्गर की मदद से लड़ाई जीत ली।  वैसे तो शहनाज ताडोबा सफारी मे मोहर्ली गेट से गाईड के तौर पर 2010 मे होलैंड के तोबीस टुरिस्ट के साथ जिप्सी मे गई थी। उसका संघर्ष तभी से सुरू हुआ उस दिन सफारी से वापस आने के बाद  मोहर्ली गेट के पुरे गाईड जमा हो गये थे। शहनाज को गाईड पर किसने जाने दिया। गाईड ना होने के बाद वह गई कैसे ? शहनाज की पैदाईस ताडोबा की है उसे जाने का दिल हुआ और वह जबरदस्ती से गाईड पर चली गई थी। तब इस बात से मोहर्ली गेट के गाईड चीड गये थे। तभी से शहनाज ने सोचा मैं बनूंगी तो गाईड ही बनूंगी चाहे कुछ भी हो जाये। वह अपने संघर्ष का पहला कदम उठा चुंकी थी।
2015 में शहनाज ने महिला टूरिस्ट गाईड में अपने साथ 5 महिलाओं को भी शामिल किया ।
महिलाओं को गाईड में शामिल करने के लिए शहनाज ने मोहर्ली के हर घर का दरवाजा खटखटाया डर के मारे कोई आगे नहीं आया । बड़ी मुश्किल से 5 महिलाएं तैयार हुईं।
शहनाज ने उनके परिवार वालों को अच्छी तरह समझाया कि अगर कोई किसी महिला के चारित्र्य पर उंगली उठेगी तो डरना मत।  फिर वो 5 महिलाएं तैयार हुई। गाईड बनने के बाद महिलाओं को साड़ी से पैंट शर्ट पर आना पड़ा।  जिन्होंने कभी साड़ी के अलावा कुछ नहीं पहना था। वे अब पैंट शर्ट मे गाईड पे जाने लगे है
यह उनमें पहला बदलाव था। गाँव में इन महिलाओं ने काफी भलाभुरा कहां गया फिर भी हार न मानी। शहनाज उनके साथ चट्टान की तरह खड़ी रही। 3 साल तक सभी महिलाओं ने अतिरिक्त गाइड के रूप में काम किया।  उन्होंने रेग्युलर गाईड में शामिल होने के लिए वन अधिकारियों से भी मुलाकात की।

पुरुष मार्गदर्शक यह मानने को तैयार नहीं थे इसलिए वन अधिकारी भी चुप थे और सही समय का इंतजार कर रहे थे। तत्कालीन वन मंत्री सुधीरभाऊ मुनगंटीवार ने देखा कि ताडोबा में जंगल सफारी पर जाना अब आम आदमी की बस की बात नहीं रही है इसलिए उन्होंने स्थानीय लोगों के बारे में सोचा और ताडोबा में सफारी पर जाने के लिए खुली बस (कैंटर बस) और स्कूली छात्राओं के लिए बस शुरू किया गया। CCF गणपति गरड ने महिला गाईड को खुली बस (कैंटर बस) मे जाने देने का निर्देश दिया गया और साथ मे फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के गेस्ट की गाडी पर सिर्फ़ महिला गाईड ही जाएगी ऐसा कहा गया।
ताडोबा में महिला गाईड की नियुक्ती में माजी वनमंत्री सुधीरभाऊ मुनगंटीवार, CCF गणपति गरड साहब, DFO गजेंद्र नरवणे साहब, परोमिता गोस्वामी, रानमांगली NGO के अनिरुद्ध चावजी, पगमार्क NGO के मृगाक सावे, और चंद्रपूर की इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का बडा योगदान रहा है।
उस समय केवल पुरुष गाईड ही जिप्सियों पर जाते थे।  महिलाओं को जिप्सी में जाने की अनुमति नहीं थी। पुरुष गाईड महिलाओ को जाने नही देते थे। इसके बाद जिप्सी पर महिलाओ को गाईड पर जाने देने के लिए संघर्ष खडा करना पडा । उसके बाद ताडोबा के  वनअधिकारी को जिप्सी पर महिला गाईड जाने देने की अनुमति मिली।

जिप्सी पर महिला गाईड को जाते वक्त समझ मे आया की अभी भी महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिला है। ताडोबा में गाईड के तीन ग्रेड A B C है। महिलाओं को C ग्रेड दिया गया और C ग्रेड के पुरुष गाईड ने एक शर्त मे शामिल किया की वे भी ओपन बस मे गाईड करेंगे। C ग्रेड का रोटेशम अलग था और A और B का अलग रोटेशन था। इन रोटेशन मे 40 पुरुष गाईड थे और 6 महिला गाईड थी। फिर  शहनाज ने महिला और पुरुष गाईड का संयुक्त रोटेशन करने ने के लिए प्रयास किया  विरोध भी हुआ और इसमे सफल भी हुए।

2010 से 2022 तक 12 साल के लंबे संघर्ष के बाद आज ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प मे महिला गाईड की नियुक्ति की गई है। ताडोबा के मोहर्ली, जुनोना, खुंटवडा, नवेगाव, कोलारा गेट पर कुल 19 महिला गाईड कार्यरत है और महाराष्ट्र में अन्य व्याघ्र प्रकल्प में भी महिला गाइड की नियुक्ति की जा रही है। यह बहोत बडा बदलावं है जो शहनाज ने प्रयास किया और महिलाओ के लिए एक जगह बनाई है। “नारी शक्ती झिंदाबाद” ताडोबा की वनरानी है।

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