मोहर्ली बफर में 90 % पौधे जीवित होने का प्रशासन का दावा ; हकीकत मे स्थिति कुछ ओर

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चंद्रपूर : – ताडोबा में हर साल वनउत्सव मनाया जाता है।  राज्य योजना 2020-21 के तहत पौधरोपण कार्यक्रम किया गया। 2020-21 में ताडोबा के मोहर्ली बफर क्षेत्र के 25 हेक्टर क्षेत्र में 21 हजार 875 पौधे रोपे लगाए थे।

मोहर्ली वन अधिकारी  ने मीडिया को बताया कि 2020-21 एक साल में करीब 90 % पौधे जीवित हैं। हालांकि, पूरे क्षेत्र में अधिकांश पौधे मरते हुए दिखाई दे रहे हैं।  केवल एक चीज बची है वह है लाठी, जो कई पौधों को खड़ा रखने के लिए लगाई गई थी।
सूचना का अधिकार कानून कार्यकर्ता उमेश भाटकर ने पूरे मामले की गहन जांच की मांग की है। बारिश का मान्सून शुरू होने से पहले हर जगह पौधे लगाए जाते हैं।
कहा जाता है की मोहर्ली बफर क्षेत्र के कुल 35 हेक्टर क्षेत्र में 21 हजार 875 पौधे रोपने के लिए 44 लाख 25 हजार 717 रु खर्च किया गया है। सीतारामपेठ में 10 हेक्टर भूमि पर 6250 पौधे, कोंडेगांव में 10 हेक्टर भूमि पर 6250 पौधे, इरई बांध की 15 हेक्टर भूमि पर 9375 पौधे लगाए गए थे।


इस बीच, यदि कुछ रोपे मर गए थे, तो उन्हें बदलने के लिए अतिरिक्त 20 % रोपे खरीदे गए थे। अक्टूबर महिने में इन पौधों का निरीक्षण की रिपोर्ट के अनुसार सीतारामपेठ में 92 %, कोंडेगांव में 89.60 % और इरई बांध में 91.55 % पौधे जीवित थे।
मोहर्ली वनपरिक्षेत्र अधिकारी  के मुताबिक लगभग 90 % पौधे जीवित है।
दरअसल, सीतारामपेठ, कोंडेगांव और इरई बांध के इलाको के जगहों पर ज्यादातर रोपे मर चुके हैं। आधे से ज्यादा पौधे पूरी तरह से नष्ट हो चुके हैं।
केवल कागजों पर ही ये पौधे जीवित हैं। कही जगह बैग के साथ कई पौधे भी फेंके गए है।  इससे पौधरोपण की गंभीरता का पता चलता है। कुल मिलाकर पूरा मामला संदेह के घेरे में है।  पूरे मामले की जांच से बड़ा झटका लगने की संभावना है।
इन वनरोपण के काम से स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सकता था लेकिन यह काम स्थानीय लोगों के बिना दूसरी संस्था को दे दिया गया था। यह RTI से स्पष्ट हुआ है।

सूचना का अधिकार कार्यकर्ता उमेश भाटकर पूरे मामले की निगरानी कर रहे हैं।  यह पूरा मामला संदिग्ध है।  स्थानीय लोगों के लिए रोजगार नहीं है, रोपण की दर में भी बड़ा अंतर है।  90 % पौधे मर चुके हैं।  उमेश भटकर ने मांग की है कि इस मामले में अधिकारियों-कर्मचारियों की गहन जांच होनी चाहिए।

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