ताडोबा की नारीशक्ति: जंगल से जुड़ी महिलाओं की अनूठी कहानी

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जागतिक महिला दिन विशेष

ताडोबा-अंधारी टायगर रिज़र्व (TATR) सिर्फ बाघों के लिए ही नहीं, बल्कि यहां की नारीशक्ति के लिए भी प्रसिद्ध है। जंगल से जुड़े इस क्षेत्र में महिलाएं कई तरह की भूमिकाएं निभा रही हैं—चाहे वह गाइड के रूप में पर्यटकों को जंगल की सैर कराना हो, स्वयं सहायता समूहों के जरिए आर्थिक सशक्तिकरण हो, या वन्यजीवों के संरक्षण में सक्रिय भागीदारी।

संघर्ष से सफलता तक का सफर
ताडोबा के बफर क्षेत्र में रहने वाली कई महिलाएं कभी जंगल पर निर्भर थीं, लेकिन समय के साथ उन्होंने अपने कौशल का उपयोग करके एक नया मार्ग अपनाया। वन विभाग और विभिन्न एनजीओ की मदद से ये महिलाएं अब आत्मनिर्भर बन रही हैं।

महिला सफारी गाइड: जंगल की नई रहनुमा

पहले जंगल सफारी में सिर्फ पुरुष गाइड ही देखे जाते थे, लेकिन अब कई महिलाएं भी पर्यटकों को ताडोबा के जंगलों की गहराई से जानकारी दे रही हैं। इनमें से एक प्रमुख नाम शहनाज बेग का है, जो ताडोबा की पहली महिला गाइडों में से एक हैं।

शहनाज बेग और अन्य महिला गाइडों ने समाज की परंपरागत धारणाओं को तोड़ते हुए इस क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। पर्यटकों को वन्यजीवों की पहचान, उनके व्यवहार और पारिस्थितिकी तंत्र की बारीकियों को समझाकर वे जागरूकता बढ़ाने का काम कर रही हैं। आज शहनाज बेग जैसी महिलाएं जंगल और पर्यटन के क्षेत्र में मिसाल बन चुकी हैं।

बाँस उद्योग में महिलाएं: आत्मनिर्भरता की मिसाल

बफर गांवों की कई महिलाएं बाँस से बनी कलाकृतियों और वस्त्रों के निर्माण में भी सक्रिय हैं। यह कार्य न सिर्फ उनकी आजीविका का साधन बना है, बल्कि यह एक पारंपरिक कला को भी जीवित रखे हुए है। इन महिलाओं के बनाए हुए हस्तशिल्प, टोकरी, चटाई, और सजावटी वस्तुएं पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं।


अन्नपूर्णा बावंकर उन महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने बाँस शिल्प को न केवल अपने जीवनयापन का साधन बनाया, बल्कि इसे एक नई पहचान भी दिलाई। कठिन परिस्थितियों के बावजूद, अन्नपूर्णा ने अपने हुनर को निखारा और आज वे अन्य महिलाओं को भी प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रही हैं। उनका योगदान न केवल स्थानीय कला और संस्कृति को संजोए रखने में महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल रही है।


वन विभाग और विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों की मदद से अन्नपूर्णा और उनकी जैसी कई महिलाएं अपने उत्पादों को बड़े बाजारों तक पहुँचा रही हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है। यह न सिर्फ महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है, बल्कि ताडोबा के इको-टूरिज्म को भी बढ़ावा दे रहा है।

एमटीडीसी (MTDC) नागपुर: महिलाओं द्वारा संचालित पहला रिसॉर्ट

ताडोबा की नारीशक्ति केवल जंगल सफारी, वन्यजीव संरक्षण और हस्तशिल्प तक सीमित नहीं है, बल्कि अब पर्यटन क्षेत्र में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही है। इसका एक शानदार उदाहरण एमटीडीसी (MTDC) नागपुर का वह रिसॉर्ट है, जिसे पूरी तरह से महिलाओं द्वारा संचालित किया जा रहा है।

मुस्कान बेग इस पहल की प्रमुख महिलाओं में से एक हैं, जो न केवल इस रिसॉर्ट का संचालन कर रही हैं, बल्कि अपनी टीम के साथ पर्यटकों को उत्कृष्ट सेवाएं भी प्रदान कर रही हैं। उनके नेतृत्व में यह रिसॉर्ट स्वच्छता, पर्यावरण के अनुकूल संचालन और बेहतरीन आतिथ्य के लिए जाना जाता है।

विशेष बात यह है मुस्कान बेग, ताडोबा की पहली महिला गाईड शहनाज बेग की बेटी हैं। उन्होंने अपनी माँ से जंगल और पर्यटन के क्षेत्र में काम करने की प्रेरणा ली और अब खुद पर्यटन व्यवसाय में एक नई पहचान बना रही हैं। शहनाज बेग ने जिस तरह से ताडोबा में महिला गाइडों के लिए रास्ता खोला, उसी तरह मुस्कान बेग भी पर्यटन क्षेत्र में महिलाओं के लिए नए अवसरों का निर्माण कर रही हैं।

मुस्कान और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया है कि पर्यटन क्षेत्र में भी महिलाएं नेतृत्व कर सकती हैं और सफलता की नई ऊंचाइयों को छू सकती हैं। यह पहल न केवल आर्थिक रूप से महिलाओं को सशक्त बना रही है, बल्कि यह एक उदाहरण भी पेश कर रही है कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकती हैं।

संरक्षण योद्धा: जंगल की रक्षा में महिलाओं की भूमिका
वन विभाग और एनजीओ के सहयोग से कई महिलाएं संरक्षण कार्यों में भी जुड़ी हैं। कुछ महिलाएं जंगल में गश्त करने वाली वन सुरक्षा समितियों का हिस्सा हैं, जो अवैध शिकार और वनों की कटाई रोकने में मदद करती हैं। वे स्थानीय समुदाय को भी जागरूक करती हैं कि जंगल और वन्यजीवों का संरक्षण क्यों ज़रूरी है।

गडचिरोली की वन परिक्षेत्र अधिकारी मधुमती तावडे को महिला दिवस पर सम्मानित, वनसंवर्धन में योगदान

गडचिरोली की वन परिक्षेत्र अधिकारी, मधुमती तावडे को महिला दिवस पर वनसंवर्धन में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए सम्मानित किया गया। उन्होंने वन्यजीवों के संरक्षण, हत्ती के कळप पर नियंत्रण, शिकारी पकड़ने और अतिक्रमण मामलों को सुलझाने में महत्वपूर्ण काम किए हैं। उनके प्रयासों से वन्यजीव शिकार के तीन मामलों में गहरी जांच हुई, जिससे आरोपियों को सजा मिली। वे अपने कार्यों में पुरुष और महिला कर्मचारियों के साथ मिलकर काम करती हैं।

चुनौतियाँ और उम्मीदें
हालांकि, इन महिलाओं को कई सामाजिक और पारिवारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। परंपरागत सोच को बदलना आसान नहीं था, लेकिन इनके हौसले और मेहनत ने समाज की सोच को बदल दिया। आज ताडोबा की महिलाएं दिखा रही हैं कि यदि उन्हें सही अवसर मिले तो वे किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं।

निष्कर्ष
जागतिक महिला दिन पर, हमें ताडोबा की इन जांबाज़ महिलाओं की सराहना करनी चाहिए, जो न सिर्फ जंगल और वन्यजीवों के संरक्षण में योगदान दे रही हैं, बल्कि नई पीढ़ी की लड़कियों के लिए भी प्रेरणा बन रही हैं।
शहनाज बेग जैसी महिला गाइड, बाँस उद्योग में काम कर रही महिलाएं, और वन संरक्षण में सक्रिय नारीशक्ति—सभी मिलकर यह संदेश दे रही हैं कि महिलाएं यदि ठान लें, तो किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकती हैं।
यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक आंदोलन है—जो दर्शाता है कि सशक्त महिलाएं एक बेहतर समाज और एक संरक्षित पर्यावरण की नींव रख सकती हैं।

मोहम्मद सुलेमान बेग 

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