
चंद्रपुर (मोहम्मद सुलेमान बेग) : चंद्रपुर जिले के आसपास के वनक्षेत्र अपनी जैविविविधता और खासतौर से बाघ स्वस्थ आबादी के लिए जाना जाता है। विश्व प्रसिद्ध ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प भी इसी जिले में आता है। उपयुक्त वनक्षेत्र व जल स्रोत होने की वजह से ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान व्याघ्र प्रकल्प को दूसरे राज्यों के व्याघ्र प्रकल्प से जोड़ने का काम करता है। एक व्याघ्र प्रकल्प से दूसरे व्याघ्र प्रकल्प तक जाने के लिए बाघ जो वनक्षेत्र एवं रास्ते का इस्तमाल करता उसे टाइगर कॉरिडोर कहते है। जो की बाघ की आबादी का प्रसार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
जिले के ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान से ऐसे कई कॉरिडोर निकलते हैं जो वन्य प्राणियों का घर भी है इसमें से एक कॉरिडोर विहिरगांव-मूर्ति, राजुरा तालुका में आता है, जो ताडोबा की कावल व्याघ्र प्रकल्प तेलंगाना से जोड़ता है। इस कॉरिडोर में बाघों की शिकार (भोजन) की अच्छी आबादी है । बाघो के लिए कॉरिडोर एक महत्वपूर्ण भाग होता है बाघ मानव आबादी क्षेत्र से न गुजरते जंगल के रास्ते से दूसरे क्षेत्र मे जाने आसानी होती है। एक तरह से कॉरिडोर से मानव वन्यजीव संघर्ष भी कम होता है इसके बंद करने से मानव वन्यजीव संघर्ष बढ़ सकता है।
ऐसा आंकड़ा NTCA एवं वन विभाग द्वारा दिया गया है। यह क्षेत्र अनिर्णीत कन्हारगांव वन्यजीव अभयारण्य में आता है। विहिरगांव-मूर्ति, राजुरा वही क्षेत्र है जहां 128 हेक्टर में विमानतल को केंद्र सरकार ने मंजूरी दी है। कन्हारगांव को अप्रैल 2021 में उद्धव सरकार ने वन्यजीव अभ्यारण्य का दर्जा दिया था। अब उसे वर्तमान की सरकार द्वारा विमानतल के चलते वापस लेने पर विचार किया जा रहा है। राजूरा वन क्षेत्र जैविक विविधता और बाघ के स्वस्थ आबादी के लिए महत्वपूर्ण है।
विहिरगांव-मूर्ति, राजुरा ग्रीन फील्ड विमानतल आने से ताडोबा- कवाल टाइगर कॉरिडोर टूट जाएगा और इससे मानव वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ेगा। बाघ के अनुकूलित क्षेत्र का संरक्षण से बाघ व वन्यजीव संरक्षण है।
राजूरा विमानतल आने की खबर से वन्यजीव संरक्षक एवं वन्यजीव प्रेमीयो में असंतोष दिखाई दे रहा है।
