चंद्रपूर : (मोहम्मद सुलेमान बेग)
बारीश के तीन माह के बाद सुरू हुए ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व में सफारी जिप्सी वाहनों की चर्चा दबी आवाज मे शुरू होने लगी है।
पर्यटन के दौरान जिप्सी मे बिगाड ना हो और सफारी मे सैलानियों को होने वाली असुविधा से बचने के लिए वनविभाग ने मारुति शोरूम के माध्यम से सभी जिप्सी वाहनों की जाचं 25 ऑगस्ट से 30 ऑगस्ट तक किया गया था।
इस जाचं के दौरान, यह बताया गया कि कुछ जिप्सी वाहनों का पंजीकरण अवैध है, यह भी देखा गया है कि कुछ जिप्सी वाहनों में अलग-अलग जिप्सी पुर्जे लगाए गए हैं और कुछ जिप्सी वाहनों में अलग-अलग इंजन और चेसिस नंबर हैं।
फिर भी ऐसे अवैध जिप्सी वाहन ताडोबा की सड़कों पर दौड रहे हैं।
ताडोबा के सुरुवात के पहले दिन ही एक जिप्सी मोहर्ली गेट से 100 मीटर की दूरी पर जाकर बंद हो गई थी। उस जिप्सी के सैलानियों को दूसरी जिप्सी बुलाकर शिफ्ट करना पडा था।
अगर जंगल में बाघ के सामने ऐसा होता तो जिप्सी के सैलानियों का क्या होता? हमने पहले ही ताडोबा में बाघों को जिप्सियों के पास से गुजरते हुए देखा है।
ऐसे में सैलानियों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहा है ? ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए वनविभाग क्या कर रही है ? गरीब जनता को धोके से जिप्सी बेचने वाले ऐसे फर्जी इंसान पर कारवाई क्यों नहीं हूंई ?
क्या वनविभाग केवल पंजीकरण शुल्क लेने मे व्यस्थ है ?
साथ ही एक तरफ डीजल वाहन बंद होने पर भी वनविभाग ने कोलारा गेट के रिसोर्ट से डीजल वाहन को जिप्सी की तरह ओपन करके चलाने की अनुमति कैसे दी गई है?
क्या इको टूरिझम प्लॅन मे डिजल गाडी चलाने की अनुमती है ?
ऐसा है तो फिर अन्य पर्यटन द्वार पर भी ऐसी डीजल गाड़ियों को मॉडिफाई करके चलाने की अनुमती देनी चाहिए ताकि अवैध पुरानी जिप्सी को उच्चा मॉडेल दिखाकर ताडोबा मे ना चला सके। नियम सबके लिए समान होना चाहिए। ऐसे कई सवाल चर्चा में आ रहे हैं।