अंधविश्वास से वन्यजीव और पर्यावरण खतरे में

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जिल्हा प्रतिनिधी (यश कायरकर) :
हमारे देश में वन्यजीवों के अंगों का उपयोग अघोरी पूजा और गुप्तधन के लिए किया जाता है. जिसमें सांप, कछुए, बाघ, भालू, उल्लू, चमगादड़ जैसे हजारों जानवरों, पक्षियों को मारते हैं. और यह पर्यावरण के प्रति विनाश को न्योता है । लोगों को धन की वर्षा, गुप्त धन प्राप्त करने, असाध्य रोगों को दूर करने, दैवीय शक्ति प्राप्त करने और यौन क्षमता बढ़ाने, समाज में झुटी भ्रांतियां फैलाते हैं । विभिन्न जानवरों, पक्षियों और सरीसृपों के अंग प्रदान करने के लिए कहा जाता है. और हजारों जानवरों को मारा जाता है।


इसमें हमारे देश में अलग-अलग जानवरों के बारे में अलग-अलग अंधविश्वास पैदा किए गए हैं. सांप, मेंढक, कछुए जैसे सरीसृप. कौवे, उल्लू, चमगादड़ जैसे पक्षी, बाघ, भालू, मेंढक, बिल्लियाँ जैसे जानवरों को लेकर अलग-अलग अंधविश्वास और धारनाये हैं।
‘मालवन’ सांप के बारे में काफी अंधविश्वास है. और वे इस सांप का उपयोग गुप्तधन को खोजने के लिए करते हैं । इसलिए,यह उच्च मांग के चलते व्यापक रूप से तस्करी की जाती है. ईस सांप को तो दो मुंह वाला सांप कहते हैं.पर सिर्फ एक मुंह होता है । इस सांप की पूंछ, इसके मुंह की तरह ही संकरी होती है, इसलिए दूर से देखने पर ऐसा लगता है कि इसके दो मुंह हैं। और चूंकि इसकी मांग और कीमत लाखों-करोड़ों में है, इसलिए पाखंडी और तस्कर पूंछ के किनारे जलती अगरबत्ती या गर्म तार से आंखों जैसे छाले बनाते हैं । ‘कछुए’ के बारे में भी काफी अंधविश्वास है । जो छिपे हुए खजाने को खोजने, पैसे की बारीश करने के अंधविश्वास में वजनी, काले कछुए की तलाश में लाखों कछुए पकड़े जाते हैं.और इन कछुओं की बड़ी मात्रा में तस्करी की जाती है. पैसों की बारिश में हजारों कछुए मारे जाते हैं. लेकिन आज तक कहीं भी पैसों की बारिश से कोई अमीर नहीं बना. लेकिन हजारों लोग जेल जा चुके हैं ।
उसके बाद ‘उल्लू और चमगादड़’ जैसे पंछी अंधविश्वास का शिकार हो रहे हैं. उल्लू को लक्ष्मी का वाहन माना जाता है और इसका उपयोग अघोरी पूजा के लिए किया जाता है । छिपे हुए खजाने की खोज, पैसे बरसाने, दूसरों को मंत्रमुग्ध करने जैसे अंधविश्वासों के कारण बेशुमार शिकार से इन पक्षियों की संख्या में काफी गिरावट आ रही है । जबकि ‘उल्लू’ चूहे की आबादी को नियंत्रित करने वाले किसान का दोस्त होता है।
इसके बाद बाघ, भालू, मेंढक, बिल्लियाँ, जैसे जानवरों के बारे में गलत धारणाएँ पैदा कर अंधविश्वास फैलाने और उनके अंगों का उपयोग करने वाले, पाखंडी बाबा अघोरी पूजा, और खाने में के रूप में इन जानवरों का शिकार और बड़ी संख्या में तस्करी की जाती है. यह भ्रांति है कि बाघ की खाल, धन की वर्षा, शारीरिक दुर्बलता को दूर करने के लिए , शत्रु का नाश करने के लिए भोजन में मूछों का प्रयोग, बाघ के दांत और नाखुनों का प्रयोग गले में ताविज पहनने से अच्छे दिन आएंगे, पर यह कोरा अंधविश्वास ही है।
‘पैंगोलिन’ (वज्रशल्क बिल्ली), ‘भालू’ इनकी, बुरी आत्माओं को दूर भगाने और अपनी यौन शक्ति को बढ़ाने के लिए भालू के नाखून,भालू के जननांगों का भी मूर्खता से उपयोग किया जाता है. लोगों के बीच इस तरह की तर्कहीन भ्रांतियां फैली हुई हैं. फलतः दीमक खाकर किसानों और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने वाले पैंगोलिन, भालू अंधविश्वास का शिकार होकर विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गयी हैं. इन पाखंडीयों के द्वारा समाज में फैली भ्रांतियों, अंधविश्वासों और पशु अंगों की मांग के कारण हर साल हजारों जानवर, पक्षी, सांप पकड़े जाते हैं और मारे जाते हैं. न केवल शिकारियों पर बल्कि पाखंडी बाबाओं के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और टोना विरोधी अधिनियम, 2013 के तहत भी सख्त कार्रवाई की जानी जरूरी है. साथ ही वन विभाग को भी वन क्षेत्रों से सटे और लोगों को इस तरह की कट्टरता और अंधविश्वास के खिलाफ मार्गदर्शन और शिक्षित करना अनिवार्य हो गया है।

 यश कायरकर, (9881823083)

अध्यक्ष, ‘स्वाब नेचर केयर संस्था.’

सचिव, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति नागभिड़

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