
पेड़ों की डाल पर चहकने वाले, अब पिंजरे में कैद रहकर विलुप्त होने की कगार पर।
हमेशा इन्हें छुड़ाने वन्यजीव संस्थाये करते हैं मांग।
तलोधी (बा.) यश कायरकर
तोते जिनकी दर्जनों प्रजातियां है जो बेहद ही खूबसूरत होते हैं । यह जल्द ही बोलना सीख जाते हैं, और इंसानी आवाजों की हूबहू नकल करते हैं। और इंसानों की तरह बोलना सीख जाते हैं। जो यह गुण इनके लिए , इनकी आजादी के लिए और इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है। और अब हालात बदतर होते जा रहे हैं। पर्यावरण में पेड़ों पर से ज्यादा तो यह लोगों के अहाते में लटकते पिंजरे में कैद दिखाई देने लगे हैं । कुछ भोंदु बाबाजी भी इन्हें भविष्यवाणी बताने के लिए, पैसा कमाने के लिए पिंजरे में कैद कर पालते हैं।
यह तोते पेड़ों की शाखाओं पर चमकते हुए पके हुए फल खाते हैं । और उनके बीजों को खेत खलियान में जंगल पहाड़ों में मुक्त संचार करते हुए बीजों का फैलाव कर देते हैं। जिनसे नई नई जगह पर पेड़ उग आते हैं और हरियाली बनी रहती है। यह तोते जंगलों की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान निभाते हैं। तोते पेड़ों की खोखली शाखाओं में अपने घोसले बनाकर जनवरी-फरवरी महीने के बीच में चार-छह अंडे देते हैं । पर इन पर निगरानी रखते हुए तस्करी करने वाले उन घोसलों में जैसे ही बच्चे अंडे से निकल आते हैं , और थोड़े बड़े होने लगते हैं उन्हें निकालकर बाजारों में शौकीन लोगों को बेच देते हैं । फिर इन तोतों की सारी जिंदगी उन पिंजरो में ही पिंजरों की कैद में ही गुजर जाती है। और यह तस्करी करने वाले और लोगों का शौक इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है।
पर इनके संरक्षण के लिए महाराष्ट्र राज्य वन विभाग ने तोते पालने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की तैयारी कर ली है। जिस में वन्य जीव संरक्षण कायदा 1972 के धारा 4 के तहत तोते को पिंजरे में कैद रखना गैरकानूनी है। और इसके लिए उस तोतों को कैद करने वाले व्यक्ति को साल (₹25000/-) पच्चीस हजार रूपए जुर्माना और कैद की सजा भी हो सकती है । पर इस और अनदेखी कर बहुत से घरों में तोते पिंजरे में कैद ही दिखाई देते हैं । अब वन विभाग को कड़े कदम उठाते हुए इन पर कार्रवाई करनी जरूरी हो गई है। और इसके लिए हमेशा ही वन्यजीव प्रेमी संस्थाएं मांग करती रहती है। और इस और ध्यान देते हुए इनको विलुप्त इकरार से बचाया जा सकता है।
